अभी तो और निर्भया और आसिफ़ा आएँगी
Yamini Parashar is pursuing her BA from Delhi university. She likes to write poems and observe things and is concerned with social issues. She identifies herself as a feminist and sees herself as a clinical psychologist in a few years. She’s been a part of a few poetry programmes held in her city.
अभी तो और निर्भया और आसिफ़ा आएँगी
अभी तो और निर्भया और आसिफ़ा आएँगी,
फिर से मेरी चुनरी कलंकित हो जाएँगी।
फिर से दाग़ लगेगा मेरे दामन पर,
फिर से न्याय की गुहार सब माँगेंगे।
फ़िर से वही मोमबत्ती–पोस्टर होंगे
और फिर से मेरे नाम भी बदले जाएँगे।
वो मेरी लिबास पर कीचड़ उछालेंगे
और फिर से मुझे ही कटघरे में ला कर खड़ा करेंगे।
वो मुझे उसूलों के ख़िलाफ़ बता देंगे,
शायद मुझे नादान भी कह देंगे।
फिर से मेरे घर से बाहर निकलने पर रोक लगा देंगे,
और हमेशा की तरह मुझे ही मेरे साथ हुई हैवानियत का ज़िम्मेदार ठहरा देंगे।
एक पिता से फिर उसकी बेटी छिन जाएगी,
इज़्ज़त सरेआम बिक जाएगी।
हमेशा की तरह देश भर में कैंडल मार्च से डंका बजेगा,
पर शाम ढलते ही वो जज़्बा भी थक कर चूर हो जाएगा।
जब मेरे जिस्म को नंगा किया जा रहा था
तब समाज लज्जित नहीं हो रहा था?
समाज सिर्फ़ तमाशा देख कर ‘जस्टिस–जस्टिस’ चिल्लाता है।
उसी दिन हैवानियत का एहसास हुआ मुझे,
जब घर के अंदर ही कोई चाचा–मामा गुड़िया के जिस्म को छू मुस्कुराए बैठे थे,
तब घर के अंदर पल रहे संस्कारों ने भी कानों में अपने रुई लगाए बैठे थे।
अब तो मैं भरी बस में भी संभल कर चलती हूँ,
कि कहीं कोई हैवान अपना हाथ ना रगड़ ले मुझमें!
सहम जाती हूँ मैं, जब सड़कों पर सिर्फ़ लड़के नज़र आते हैं।
मंदिरों में ~ जहाँ देवी की पूजा करते हैं,
वहाँ भी लड़कियों के साथ कुकर्म करने से हैवान नहीं डरते हैं।
अब तो वह देवी भी रोती होगी,
जब भी बेटियां बेआबरूँ होती होंगीं।
घर में माँ कितना भयभीत रहती होंगी,
चीख़ें बहुत लगाती होंगी,
पर शायद उन चीख़ों को सुन नहीं पता है या सुन कर अनसुना कर देता हो,
और वो चीख़ें गूँज कर, टूट कर वापस लौट आती है उस माँ के पास ही।
पर दहलीज़ पार करते वक़्त मुझे सुनायी देती हैं माँ की वो चीख़ें,
पाबंदियाँ तो लड़कियों का गहना है,
ज़बरन ही सही पर उसे पहनना है।
इन पायल की बेड़ियों से जकड़ी हुई हूँ,
या शायद उसके शोर से डरी हुई हूँ,
कि कहीं इसकी आहट कोई सुन ना ले
और बना ना ले मुझे अपने हवस का शिकार।
Opinions expressed are of the writer.